चिराग ने तोड़ी चाचा की पार्टी, तो पारस ने केंद्रीय संसदीय बोर्ड किया भंग
केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने तीन साल से भी कम पुरानी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) में दरार दिखने के दो दिन बाद बृहस्पतिवार को पार्टी के संसदीय बोर्ड को भंग कर दिया. पारस द्वारा जारी इस आशय का एक पत्र आरएलजेपी के प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल द्वारा साझा किया गया है. जिन्होंने कहा कि ‘‘लोकसभा चुनाव के मद्देनजर’’ यह फैसला लिया गया है और ‘‘जल्द ही एक नया संसदीय बोर्ड गठित किया जाएगा’’. हालांकि, इस घटनाक्रम को दो दिन पहले पार्टी को फजीहत का सामना करने के संदर्भ में देखा जा रहा है. जब पांच सांसदों में से एक पारस के भतीजे चिराग पासवान द्वारा आयोजित एक समारोह में शामिल हुए थे.
चिराग को पारस का कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के स्थापना दिवस का जश्न मनाने के लिए चिराग और पारस दोनों ने मंगलवार को क्रमशः पटना और हाजीपुर में अलग-अलग समारोह आयोजित किए थे. लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के छोटे भाई पारस द्वारा 2021 में पार्टी को विभाजित किए जाने तक चिराग पासवान पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे. लोजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में छह सीटें जीती थीं. चिराग ने अपनी सीट जमुई को बरकरार रखा था, जबकि पारस ने दिवंगत पासवान के पुराने संसदीय क्षेत्र हाजीपुर से संसद तक पहुंचे.
चाचा-भतीजे के बीच विवाद चुनाव आयोग तक पहुंच गया, जिसने लोजपा का चुनाव चिह्न जब्त कर प्रतिद्वंद्वी गुटों को अलग-अलग पार्टियों के रूप में मान्यता दे दी थी. इसके बाद चिराग अलग-थलग पड़ गए क्योंकि उनके चाचा केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाने के अलावा अन्य सभी लोजपा सांसदों का समर्थन प्राप्त करने में सफल रहे थे. चिराग के नेतृत्व वाले दल को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नाम से जाना जाता है. हालांकि, 41 साल के चिराग को तब बल मिला जब वैशाली की सांसद वीणा देवी इस सप्ताह की शुरुआत में उनके समारोह में पहुंचीं. उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि उनका इरादा कभी भी चिराग को छोड़ने का नहीं था और शुरुआत में वह प्रतिद्वंद्वी खेमे में चली गईं क्योंकि वह अपने चाचा के साथ उनके झगड़े को समझ नहीं पायी थीं.
