Search
Close this search box.

*दैवी संस्कारों से बनता है दैवी संसार: सोनिका बहन*

*दैवी संस्कारों से बनता है दैवी संसार: सोनिका बहन*

 

उजियारपुर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, समस्तीपुर द्वारा रेल परिसर स्थित राम जानकी हनुमान मंदिर में आयोजित सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर के तीसरे दिन परमात्मा के कर्तव्य के बारे में बताते हुए ब्रह्माकुमारी सोनिका बहन ने कहा कि परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा के श्री मुख से जो श्रेष्ठ ज्ञान देते हैं उससे हमारे जीवन में सद्गुणों और शक्तियों की धारणा होती है। हमारे दैवी संस्कार जागृत होने लगते हैं। इन दैवी संस्कारों की धारणा के आधार से ही हम भविष्य में सतयुगी देवता बनते हैं और यह दुनिया सतयुग। जहां विष्णु अर्थात् श्री लक्ष्मी और श्री नारायण का अखंड राज्य चलता है। विष्णु को चार अलंकार दिखाते हैं- शंख, चक्र, गदा, पदम। इन चारों अलंकारों को सच्चे अर्थों में हम अभी धारण करते हैं। शंख अर्थात् मुख से ज्ञान ध्वनि करना। कम बोलना, धीरे बोलना, मीठा बोलना, सत्य बोलना। अनावश्यक या दिल दुखाने वाली बातों से परहेज करना। ऐसा करने से हमारी वाणी वरदानी बन जाती है और शंख की भांति वातावरण को भी शुद्ध करती है। चक्र अर्थात् स्वदर्शन चक्र चलाना यानी स्वयं के सत्य आत्मिक स्वरूप को देखना, आत्मिक गुणों का चिंतन करना। ऐसा करने से स्वयं के अंदर के मायावी संस्कारों का नाश होता जाता है। गदा सकारात्मक और शक्तिशाली मनोस्थिति का परिचायक है। जो हमें किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचारों एवं भावनाओं पर विजयी बनाती है। पदम अर्थात कमल पुष्प इस संसार रूपी कीचड़ में रहते इसके प्रभाव से न्यारे रहने का प्रतीक है। यह संसार की बुराइयों से निर्लिप्त रहकर कर्मयोगी बनकर चलने की योग्यता को दर्शाता है। इन अलंकारों की धारणा से हमारा दैवी संस्कार बनता है जिससे दैवी संसार बनता है।

सात दिवसीय राजयोग मेडिटेशन शिविर दोपहर 2:00 से 3:30 बजे तक प्रतिदिन जारी रहेगा।

pnews
Author: pnews

Leave a Comment