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ग्यारह दिवसीय हरित मिथिला महाकुम्भ का आखिरी शाही स्नान समारोह पूर्वक हुआ सम्पन्न*

*ग्यारह दिवसीय हरित मिथिला महाकुम्भ का आखिरी शाही स्नान समारोह पूर्वक हुआ सम्पन्न*

संजय भारती

समस्तीपुर। मिथिलांचल की हृदय स्थली का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले समस्तीपुर जिला का अंग हसनपुर विधानसभा के बिथान प्रखंड स्थित त्रिवेणी संगम तट जगमोहरा में ग्यारह दिवसीय मिथिला महाकुम्भ का भव्य आयोजन 10 मई से लेकर 20 मई तक किया गया था। जो मंगलवार को समारोह पूर्वक आखिरी शाही स्नान के साथ समपन्न किया गया। वहीं हरित मिथिला महाकुम्भ समिति के संयोजक पिन्टू परदेशी ने बताया कि इस हरित मिथिला महाकुम्भ में अर्जुन मुखिया, बेनी यादव, पंकज कुमार, मुकेश कुमार, अनिल मुखिया आदि का सहयोग समर्पित भाव से रहा, जिससे यह 11 दिवसीय हरित मिथिला महाकुम्भ समारोहों के साथ समपन्न हुआ। मालुम हो कि हरित मिथिला महाकुम्भ सेवा समिति के संयोजक पिन्टू परदेशी पिछले ढ़ाई सालों से हरित मिथिला महाकुम्भ की सफलता का प्रचार अभियान करते आ रहे थे। जिसका परिणाम स्वरूप मिथिला महाकुम्भ स्नान के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब की भीड़ बिथान के त्रिवेणी संगम घाट जगमोहरा में देखने को मिला। वहीं मिथिला महाकुम्भ के संयोजक पिन्टू परदेशी ने कहा बिहार की सांस्कृतिक राजधानी “मिथिलांचल में पग-पग पोखर माछ मखान, सरस बोल मुस्की मुख पान, इ छी मिथिला के पहचान” मिथिला के ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर को फिर से पुनर्जीवित करने के लिये हरित मिथिला महाकुंभ के संयोजक पिन्टू परदेसी अनवरत कई वर्षों से इस अभियान को लेकर बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों बीच पहुंचकर जागरूक किया। अभियान का उद्देश्य है कि मिथिलांचल की संस्कृति विकास, स्वरोजगार, आध्यात्मिक ज्ञान विकास, रोजगार, स्वास्थ्य पर्यटन केंद्र बनाना। श्री परदेशी ने कहा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूरब में कोशी तथा पश्चिम में गंडक से घिरा लगभग छह हजार वर्ग किलोमीटर का यह क्षेत्र जिसमें बिहार के पूर्णियां, कोशी, गंगा का उत्तरवतीं भागलपुर एवं मुंगेर, दरभंगा तथा तिरहुत प्रमंडल और कोशी और गंडक के मध्य विस्तृत नेपाल का तराई प्रदेश शामिल है, जो मिथिलांचल के नाम से प्रसिद्ध है। यहां निवास करने वाले लोग मिथिलावासी कहलाते हैं। उन्होंने बताया भौगोलिक दृष्टिकोण से यह भूभाग हिमालय से निकलनेवाली नदियों के द्वारा लाकर बिछाए गए जलोढ मिट्टी से बना है जो काफी ऊर्वर है। कोशी, कमला, गंडक, करेह आदि सदानीरा नदियों ने धान, मखान और मछली के उत्पादन लिए मिथिलांचल को विश्वविख्यात किया है। उन्होंने कहा ऐतिहासिक रूप से 1097 ई0 में जब कर्णाट राजा नान्यदेव ने इस प्रदेश पर अधिकार किया तो इसे मिथिला और स्वयं को मिथिलेश्वर कहना शुरु किया, कहा जाता है कि इससे पूर्व विष्णुपुराण की कथा के अनुसार निमि नामक राजा को ऋषि वशिष्ठ ने अपने स्थान पर गौतम को यज्ञ का पुरोहित नियुक्त करने पर शाप दे दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई और बाद में उनके मृत शरीर के मंथन से उनके उत्तराधिकारी का जन्म हुआ। इसी कारण उन्हें मिथि और उनकी राजधानी को मिथिला कहा गया। मिथिला मां जानकी और राजा जनक के कारण सबके श्रद्धा का केंद्र रहा है। मिथिला में ऋषि याज्ञवल्क्य, गौतम, कपिल, मंडन, वाचस्पति, उदयन, गंगेश, पक्षधर, अयाची, वर्धमान, चण्डेश्वर जैसे अनेक विद्वान हुए जिनके योगदान से न्याय, दर्शन, मीमांसा आदि वैदिक ज्ञान की समस्त शाखाएं समृद्ध हुईं। शास्त्र के अनुसार मां जानकी के अतिरिक्त विद्या की अधिष्ठात्री मां सरस्वती का भी जन्म नेपाल के तराई प्रदेश के अभृण ॠषि के यहां हुआ। मां पार्वती भी मिथिलानी ही हैं। ब्रह्मज्ञानी नचिकेता की मां कात्यायनी भी मिथिला से थी जिन्होंने ऐतरम ब्राह्मण की रचना की। महाकवि विद्यापति अवहद्ध, मैथिली और संस्कृत के प्रकांड विद्वान के रूप में सुप्रसिद्ध हैं जिन्हें बंगला के साहित्यकार भी अपना प्रेरक मानते हैं। मैथिली की अपनी लिपि तिरहुता या मिथिलाक्षर है जिसका उल्लेख सातवीं सदी के मंदार अभिलेख में है। महाकवि कालिदास भी मधुबनी जिले के उच्चैठ के रहने वाले थे। साहित्य के आकाश में महाकवि विद्यापति, बाबू देवकीनंदन खत्री, नागार्जुन, राष्ट्रकवि दिनकर, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वरनाथ रेणु, महाकवि आरसी बाबू, सुरेन्द्र झा सुमन, प्रो. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन, मार्कण्डेय प्रवासी वासुकीनाथ झा, डॉ बुद्धिनाथ मिश्र आदि अनेक सितारे अपनी प्रखर प्रभा बिखेरते रहे हैं। मिथिला में जन्मे राजनीतिक हस्तियां ब्रह्मलीन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर, बी.पी. मंडल, बीएन मंडल, ललित नारायण मिश्र, महावीर राउत, रामसेवक हजारी, बालेश्वर राम, राजेन्द्र प्रसाद यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान आदि ने जनसेवा कर महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया । मिथिलांचल लोक चित्रकला के रुप में मिथिला पेंटिंग आज विश्व के कोने कोने तक फैल गई है। इसके अतिरिक्त लगनी, विरासत, वटगमनी, प्राती, बारहमासी, सोहर, सामा चकेवा, महेशवाणी, शारदा सिन्हा जी की लोकगीत और नचारी विधाएं आदि संगीत के क्षेत्र में अपनी सुगंध फैला रही है। मिथिला में ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पंचोभ, बसाढ, भीठ भगवानपुर, कटरा आदि अभिलेखों और बलिराजगढ, असुरगढ, नौलागढ, जयमंगलागढ, मंगलगढ़, सती महारानी स्थान शासन, कारु बाबा स्थान आदि अनेक पुरातात्विक महत्व के स्थलों का उत्खनन एवं अध्ययन किया जाना वांछनीय है। मध्यकालीन लोरिक, सलहेस, नैका बंजारा जैसी लोकगाथाएं में मिथिला की समृद्धता का बखान किया गया है। पर्यटन की दृष्टि से मिथिला में गौतम कुंड, अहिल्यास्थान, फूलहर, जनकपुर, कुशेश्वरस्थान, सिंहेश्वरस्थान, उग्रतारा, महिषी, देवधास्थित श्यामसिंह स्थान, बिथान के फुहिया जगमोहरा का त्रिवेणी संगम घाट,
सौराठ वैवाहिक सभा आदि कई स्थल महत्वपूर्ण हैं। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि मिथिलांचल का अतीत गौरवपूर्ण रहा है। वर्तमान में जनजागरण के माध्यम से चेतनायुक्त करके भविष्य को विकास की मुख्य धारा में लाने की आवश्यकता है। हरित मिथिला महाकुंभ अभियान के संयोजक पिन्टू परदेशी लगातर ढ़ाई सालों से मिथिलांचल के गांव-गांव तक फिजिकल और डिजिटल रूप से पहुंच रहे थे, जिसके फलस्वरूप लोग हरित क्रांति मुहिम का हिसाब बन रहे है, पिन्टू परदेशी हर मांगलिक और शुभ अवसर पर उपहार के रूप में पौधा देते हैं। बताते चलें पिन्टू परदेशी का पायलट प्रोजेक्ट है “हरित मिथिला महाकुम्भ” की सफलता के बाद अब पुरे बिहार में हरित महाकुंभ परियोजना को लेकर लोगों के बीच जायेंगे और लोगों से अपील करके जल जीवन हरयाली को लेकर हरेक परिवार के हर सदस्य से बाग बगीचा में बृक्षारोपन करवायेंगे।

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Author: pnews

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